दोस्तों कालसर्प दोष का नाम सुनते ही अक़सर लोग खौफजदा हो जाते है उसका एक बहुत बड़ा कारण ज्योतिषो का लोगो के सामने कालसर्प दोष का भयानक रूप प्रकट करना है। अक्सर कुछ अज्ञानी ज्योतिषी जो सिर्फ धन कमाने के लिए ज्योतिषी बने होते है किसी की भी कुंडली में राहु केतु की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन करे बगैर व्यक्ति को इतना डरा देते है की व्यक्ति सोचता है की बस अब मैं पूरी जिंदगी संघर्ष ही करता रहूँगा , मैं शारीरिक कष्ट में रहूँगा मैं कभी सफल नहीं हो सकूंगा मुझे जेल हो जाएगी , मृत्यु तुल्य कष्ट आ जायेगा आदि आदि और इसी डर दहशत का फायदा ज्योतिष उठाते है। व्यक्ति से 20 से लेकर 30-35 हजार रूपए तक वो कालसर्प दोष के उपाय के लेते है। और व्यक्ति डर का मारा हुआ देता भी है। लेकिन वास्तव कालसर्प दोष इतना ना ही इसके उपाय में बहुत अधिक धन लगता है कालसर्प दोष की कुछ एक ही ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है।
कालसर्प दोष क्या :- ज्योतिष की प्रचीन मान्यता के अनुसार जब सभी ग्रह कुंडली में राहु और केतु के मध्य में आ जाते है तो यह स्थिति कालसर्प कहलाती है , क्योंकि सभी के सभी ग्रह इस कुंडली में राहु केतु के बंधन में होते है। जिससे ग्रह अपना शुभ प्रभाव व्यक्ति पर नहीं दे पाते। परन्तु इस स्थिति में भी हमें यह देखना अत्यंत आवश्यक है की राहु केतु की कुंडली में उच्च या नीच शुभ अशुभ क्या स्थिति है। कभी कभी कुंडली में जैसा राहु केतु देखने में अशुभ प्रतीत होते है वैसे अशुभ होते नहीं। परन्तु किसी ग्रह की स्थिति से जब हमें कोई तकलीफ दिखायी देती है तो ज्योतिषी हमें कालसर्प दोष बताकर हजारो रूपए ऐठ लेते है। और हल तब भी नहीं निकलता। क्योंकि दुःख का कारण कोई और ग्रह होता है।
कालसर्प दोष के प्रकार :- कालसर्प दोष राहु केतु की भिन्न भिन्न स्थिति के आधार पर 12 प्रकार का होता है जो निम्न है :-
1.अनंत कालसर्प योग :-
लग्न भाव से सप्तम भाव तक बनने वाले कालसर्प योग को अनंत 'कालसर्प योग' कहा जाता है। इस अनंत कालसर्प योग के कारण जातक की मानसिक परेशानी पीछा नहीं छोड़ती ; बुद्धिहीन हो जाता है , मुकदमे , कोर्ट कचहरी के मामलों में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है । वैवाहिक जीवन बड़ा कष्टदायक होता है। भयंकर कठिनाई में निर्माण हेतु निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। जातक के जीवन में जन्म से ही संघर्ष प्रारंभ करना पड़ता है। जातक के जीवन में जन्म से ही संघर्ष प्रांरभ हो जाता है तथा जीवन के मध्यकाल तक परेशानियां चलती रहती है। ऐसे जातक किसी स्त्री के सहयोग से ही प्रगति कर पाते हैं और किसी स्त्री की संगति से नीचे भी गिरते है।
2. कुालक कालसर्प योग :-
द्रितीय भाव से अष्टम भाव तक बनने वाले कालसर्प योग को 'कुलिक कालसर्प योग ' कहा जाता है। 'कुलिक कालसर्प योग ' बहुत ज्यादा दुःखदायी होता है । जातक कभी स्वस्थ नहीं रहता। दिमाग में हमेशा गुस्सा भय रहता है। लगातार परेशानियों के कारण जातक चिड़चिड़ा रहता है। पारिवारिक कलह कारण घर में हमेशा अशांति बनी रहती है। वैवाहिक संबंध टूट जाता है। कमाई से ज्यादा खर्चा रहता है । पैसा पास में नहीं रुकता। जिसके कारण मानसिक परेशानी होती है। परिश्रम अधिक करने के बाद भी धन प्राप्त नहीं होता। जातक धनवान होते हुए भी कंगाल है। जातक जो भी कार्य करता है , उसे अपयश ही मिलता है। जातक की वाणी कटु और कठोर हो जाती है। ऐसा जातक अति कामुक होता है और वह अपनी कामवासना की पूर्ति में धन का अपटयय करता है अथवा शारीरिक कमजोरी के कारण वह अपनी कामशक्ति खो देता है। ऐसे जातक की जबान काली होती है। दूसरों के लिए इसकी जबान से निकली बुरी बात १०० प्रतिशत सत्य सिद्ध होती है।
3. वासुकी कालसर्प योग :-
तृतीया भाव में नवम भाव तक बनने वाले कालसर्प योग को 'वासुकी कालसर्प योग' कहा जाता है। 'वासुकी कालसर्प योग' से पीड़ित जातक को अपने पारिवारिक सदस्यों भाई-बहन की वजह से बहुत दुःख झेलने पड़ते है। मित्र दगा देते है। नौकरी काम-धन्धे में अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते है, धन कमाने के बावजूद अपयश मिलता है। जातक की धर्म -पूजापाठ में रूचि नहीं होती। भाग्य का पूर्ण सुख नहीं मिल पाता। यश , पद-प्रतिष्टा एवं पराक्रम के लिए सदैव संघर्षरत है।
4 शंखपाल (शंखचूड़ ) कालसर्प योग :-
चतुर्थ भाव से दशम भाव तक बनने वाले कालसर्प योग को 'शंखपाल (शंखचूड़ ) कालसर्प योग' कहते है। 'शंखपाल (शंखचूड़ ) कालसर्प योग ' जातक को भयंकर कष्ट झेलने पड़ते है , सुख में कमी , पिता या पति से दुःख , माता , बहन , नौकरों को लेकर अनेक मुसीबतो का सामना करना पड़ता है। कारोबार में घाटा (नुक्सान ) अधिक होता है। अपने ही भरोसे वाले विश्वाश्घात करते है । विद्याध्ययन में बाधा , कितना ही प्रयत्न कर ले आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हो जाती है की जातक कंगाल हो जाता है। मानसिक परेशानी व तनाव बना रहता है। ऐसे योग वाले जातक को विद्या प्राप्ति में बाधाये आती है। अवैध संतान या गोद लिए हुए पुत्र का पिता बनने के योग भी इस कालसर्प योग के कारण बनता है तथ
5. पदम् कालसर्प योग :-
पंचम भाव से एकादश भाव तक बनने वाले कालसर्प योग को 'पदम् कालसर्प योग' कहते है पदम् कालसर्प योग ' के कारण सन्तान का सुख नहीं मिलता है। पुत्र संतान की चिंता रहती है वृदवस्था में संतान अलग हो जाती है या दूर चली जाती है। गुप्त रोग होते है। हर कार्य में असफलता मिलती है। शारीरक अंगो में चोट लगने का भय बना है। कारावास तक भुगतना पड़ता है । ऐसा जातक स्वेच्छचारी होता है। ऐसे जातक को हमेशा अपनी मित्र मंडली से सावधान रहना चाहिए तथा उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए , क्यूंकि ऐसे जातक के मित्र विश्वश्घाती और अपना उल्लू सीधा करने वाले होते है।
12 May 2018
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